Narendra se Narendra
Book written by
Shri Kailash Narain Sarang
Foreword by Shri Amitabh Bachchan
About the Book:
एक दिन स्वामी रामकृष्ण ने अपने प्रिय शिष्य नरेंद्र (स्वामी विवकानंद) से पूछा-‘अच्छा बता तू क्या चाहता है?’ नरेंद्र नाथ ने बताया- ‘मेरी इच्छा है कि मैं ऋषि शुकदेव की भांति लगातार पूरी तरह समाधि में डूबा रहूँ। केवल शरीर रक्षा के लिए अन्न ग्रहण करूं और फिर समाधि में चला जाऊं तब स्वामी रामकृष्ण ने कुछ उत्तेजित स्वर में तिरस्कार करते हुए कहा- ‘छिः छिः तू इतना बड़ा आधार है और तेरे मुंह से इतनी छोटी बात? मैंने सोचा था तू विशाल वट वृक्ष की भांति होगा, तुम्हारी छांव में हजारों लोग आश्रय पायेंगे, शीतलता अनुभव करेंगे, और कहां तू केवल अपने बारे में सोच रहा है, नहीं रे? इतनी छोटी दृष्टि नहीं रख, समझ् लें कि केवल अपनी मुक्ति के लिए लालायित रहना भी एक प्रकार की स्वार्थ परता है।
कहते हैं इतिहास स्वयं को दोहराता है, प्रज्ञाएं धरती पर बार-बार आती है। जिस प्रकार नरेंद्र नाथ (स्वामी विवेकानन्द) अपने आरंभिक जीवन में मुक्ति के लिए बैचेन थे ठीक उसी प्रकार ये नरेंद्र भाई भी अपने जीवन का उद्देश्य एवं सार्थकता जानने के लिए प्रयत्नशील थे। संघ के प्रचारक बनने के बाद भी नरेंद्र भाई हिमालय पर तपस्या करने चले गए। जब लौटे तब राजकोट के रामकृष्ण आश्रम के कार्यालय गए वहां सह सचिव स्वामी आत्मास्थानंद जी से भेंट हुई जब नरेंद्र भाई ने अपने मन की शांति और आत्मा की मुक्ति का मार्ग पूछा तो स्वामी आत्मास्थानंद जी ने कहा ‘‘तुम्हें संसार में मानवता के विकास और इस राष्ट्र के उत्थान के लिए बहुत काम करना है।’’ नरेंद्र भाई मोदी के जीवन में यह वाक्य नया मोड़ लाए और स्वामी आत्मास्थानंद जी से उन्हें निष्काम, निष्प्रह रहकर काम करने की प्रेरणा मिली।
स्वामी विवेकानंद एवं नरेन्द्र भाई मोदी जी के आरंभिक जीवन की इस समानता से ही हमें यह पुस्तक रचने की प्रेरणा मिली
-कैलाश नारायण सारंग
Foreword by Amitabh Ji
‘नवलोक भारत’ नामक प्रसिद्ध पाक्षिक पत्रिका के संस्थापक-संपादक, श्री कैलाश नारायण सारंग अपने सुंदर प्रकाशन ‘नरेन्द्र से नरेन्द्र’ के साथ मेरा नाम भी जोड़ना चाहते हैं। उनकी इस उदारता और कृपा के लिए मैं इसलिए भी आभारी हूँ क्योंकि ‘नवलोक भारत’ ने इस वैदिक आदर्श को सदा सामने रखा है कि ‘‘व्यक्ति की निष्ठा समाज के प्रति और समाज की निष्ठा राष्ट्र के प्रति होनी चाहिए।’’
यही नहीं, श्री सारंग ने अपने ग्रन्थ के मुख्य विषय – देश के वर्तमान प्रधान मन्त्री माननीय श्री नरेन्द्र मोदी के उदय का इतिहास बताते हुए, उनके इस पक्ष को विशेष रूप से उभारा है कि सत्य और अहिंसा की राह पर चलते हुए, श्री मोदी भारत के ही नहीं, पूरी दुनिया के सुनहरे भविष्य का सपना देख रहे हैं। पुस्तक के नाम -‘नरेन्द्र से नरेन्द्र’ की प्रेरणा लेखक को विवेकानन्द नामी उन अन्य नरेन्द्र से मिली जिन्होंने अब से लगभग सवा सौ साल पहले उन्नीसवीं सदी में अमरीका जा भारत का डंका बजाया था और जिनके संदेश को इक्कीसवीं सदी के आधुनिक संदर्भ में श्री मोदी अमरीका समेत अन्य सभी देशों में पहुँचा रहे हैं।
यह पुस्तक ‘नवलोक भारत’ में नियमित रूप से प्रकाशित लेखकीय स्तम्भ ‘विचार अनुभूति’ के चुने हुए अंशों का संचयन है जो काफ़ी टेबिल किताब की शक्ल में श्री नरेन्द्र भाई मोदी के मनोहारी और प्रेरक रंगीन चित्रों सहित भलीभांति छापी गई है।
यों तो श्री सारंग पक्के राजनीतिज्ञ रहे हैं और उनकी पुस्तक पर वर्तमान प्रचार या उठा पटक की छाप साफ़ नज़र आती है लेकिन स्वामी विवेकानन्द के हवाले से उन्होंने विषय को जिस बड़ी ज़मीन से जोड़ा है, वह भी अनदेखा न जाएगा।
मैं समझता हूँ, श्री सारंग ने अपनी बात मज़बूती से पेश की है और यह पोथी हाथोंहाथ ली जाएगी।